शीत का स्वागत
किट किट करके बजते दांत
सर्दी में जम जाते हाथ
ऊनी स्वेटर भाये तन को
गरम चाय ललचाये मन को
ऐसे कई सारे कविता लिखी गई हैं , सदियों पर । जाड़े का आगमन बहुत ही धीरे- धीरे होता हैं । दुर्गा पूजा खत्म होते ही,हम एक स्टांल का इस्तेमाल करने लगते हैं । एक पतले कंबल से अपनी रात बिताते हैं ।
ठंडे के मौसम आते ही हम अलाव की व्यवस्था कर लेते हैं। तथा एक खाने का फेहरिस्त बना कर अपनी मम्मी को दे देते हैं । सुबह की धूप हमें इस तरह से ललचाती हैं कि हम उसके पास से हटने का नाम ही नहीं लेते हैं ।
फिर से नवंबर की रात आ गई हैं ! हम अहले सुबह धूप सेंकने को बैठ जाते हैं। इस बीच हमारी मम्मी द्वारा दी गई सुबह की चाय दीन बना देती हैं ।
हम एक पतले कंबल में रात भी बिता लिया करते हैं । लेकिन मन ही मन हम कई चीजों से परेशान भी रहते हैं । जैसे सबसे बड़ी समस्या है, पानी का छुना हमें अपने नाम से ही डराने लगती हैं । हम ठंडी की मौसम में अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगते हैं ।
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