चिंता महिलाओं के स्वास्थ्य की

देश के कुल कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी की बात हर साल आती हैं. कितनी महिलायें किस क्षेत्र में अपना बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं, सबकुछ सामने आती है लेकिन इनके स्वास्थ्य के बारे में कोई रिपोर्टर नहीं आती, और न उसपर कोई ज्यादा चर्चा होती है.एक सवे्क्षण के मुताबिक हमारे देश में महिलाओं की संख्या पुरूषों से ज्यादा होने की संकेत बताई जा रही हैं . ऐसे में देश की आबादी के सबसे बडे़ तबके के रूप में महिलाओं के स्वास्थ्य पर नजर जरूर जानी चाहिए. यह तथ्य थोड़ा चौकानें वाला जरूर है कि हर दूसरी महिला खून की कमी से पीड़ित है और हर तीसरी महिला का ' बाडी मास इंडेक्स' से कम है. कुल आबादी की एक चौथाई महिलाएँ कुपोषण का शिकार हैं. तमाम वादों और उसके दावों के बावजूद आगर ये हाल है, तो हमें सर्तक हो जाना चाहिए.
  कई सर्वेक्षण में यह उजागर है कि महिलाओं को पुरूषों की तुलना में कम पोषण मिलता है. यूँ बोले, तो हमारा समाज आज भी पुरूष प्रधान है. आज भी पुरूष को ज्यादा पोषण दिया जाता है. हमारे गाँव में यह प्रचलन है, कि पुरूष को काम करना होता है, तो उन्हें ज्यादा पोषण की जरूरत है, महिला तो चारदीवारी के अंदर रहती है तो उन्हें पोषण की जरूरत नही है. गांवो में यह परंपरा आज भी चलती आ रही हैं. आज भी समानता है
कोरोना महामारी के पहले ' कम्प्रेहेंसिव नेशनल न्यूट्रीशन सर्वे 2019 ' के मुताबिक सभी पोषक तत्वों से भरपूर भोजन देश के  बडे़ तबकों को नहीं मिल पाता था.मगर कोरोना काल में हालात हद से ज्यादा बिगड़ गए. टाटा कार्नेल इंस्टीट्यूट फार एग्रीकल्चर ऐंड न्यूटीशन की एक अध्ययन के मुताबिक कोरोना बंदी के समय महिलाओं के पोषक आहार में बयालीस फिसद की गिरावट आ गई. उन्हें फल, सब्जीया और दुसरे पोषक खाद्य पदार्थ कम मिले.
  घरेलू महिलाओं में कुपोषण की समस्या एक पहेली सी बनी हुई है. प्रत्यक्ष अनुभव है कि, घरेलू महिलायें सबकों खिलाने के बाद ही खाती है. अधिकाशत उन्हें बाद में खाना न बच पाने के कारण उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता है.और भारतीय परिवेश में यह चलन कई शताब्दी से चला आ रहा है. उसी तरह कम उम्र में शादी का प्रचलन चलते आ रहा है, अभी लड़की की उर्म महज 18 साल भी नहीं हो पाता है, तब तक उनकी शादी करवा दी जाती है. अभी जहाँ उनके शरीर का विकास होना जरूरी था, वहाँ उन्हें शादी ही कर दी जाती है. और उसके तुरंत बाद गर्भावस्था की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.और उस दौरान महिला और बच्चे को सही पोषण न मिल पाने पर कुपोषण का शिकार होना पड़ता है.

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