सफर

जब सफर में अकेले निकले थे.., 
तो, मन में थोड़ी घबराहट थी.. 
अपनों से दूर जाने का डर
खैर, घर से दूर रहने की थोड़ी- बहुत आदत सी हो गई थी.. 
पर दोस्तों से दूर रहने की आदत बनना थोड़ी मुश्किल थी... 
 मन ही मन एक सवाल भी कचोट रही थी
क्या रह पायोगी?? 
पर जब मंजिल की तालाश में निकली
तो न जाने कैसे उनसे थोड़ी दूरियाँ सी बन गई
न जाने क्यूं अब अकेला ही अच्छा लगता है... 

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