जोखिम का सफर
महिलाओं की सुरक्षा ,सम्मान , बराबरी आदि को लेकर चाहे जितने कड़े कानून बन जाए चाहे जितने जागरूकता अभियान चलाया जाए, पर जब तक हमारे समाज की सोच में बदलाव नहीं आता तब तक सही मायने में स्त्री बेखौफ होकर नहीं जी सकेगी. क्योंकि अभी भी उन्हें कई बातों का डर है.
हालिया में, फतेहाबाद में हुई घटना से यह जाहिर हुआ है, कि कितने भी अधिकार स्त्रियों को क्युं न मिल जाए फिर भी महिलाओं को इस समाज में डर के जीने होंगे. क्योंकि पुरुष अपनी मर्दानगी आये दिनों स्त्रियों पर दिखाते रहते हैं.
फतेहाबाद के टोहाना स्टेशन पर एक व्यक्ति ने एक स्त्री के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की, तो महिला ने उसका विरोध किया.उस पर उस व्यक्ति ने महिला को चलती हुई ट्रेन से धक्का दे दी, जिससे उसकी मौत हो गई. महिला अपने नौ साल के बेटे के साथ सफर कर रही थी.
बताया जा रहा है कि, टोहाना स्टेशन पर अधिकांश यात्री उतर गए थे, तथा ट्रेन की आधी डिब्बियां खाली हो गई थी. खैर, ट्रेन की डब्बिया से यहाँ कोई मतलब नहीं है, ट्रेन खाली हो या भरी हुई यह घटना आये दिनों होतें रहते हैं.
आपको बता दे यह घटना वहाँ घटित हुई है, जहाँ से " बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ " की शुरुआत हुई थी. आपको भी यह सुन कर थोड़ा अटपटा सा लगा होगा. लेकिन यह हमारे राज्य के लिए आम बात है, ऐसी घटनाओं का घटना.
सरकार के सामने जब भी ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, वह फिर से अपनी ढकोसलाबाजी वाली बातें शुरू कर देती है. ऐसे भी हमारी सरकार वादे देने में निपुण हैं, लेकिन वादे का पुरा होना असंभव सा होता है.
जब भी ऐसी घटनाएं होती हैं, सरकार अपनी वादों का फेहरिस्त जनता के सामने रख देती हैं, स्त्रियों के लिए अलग से डिब्बे बनाये जाने की, साथ ही लेडीज होमगार्ड की सुविधा, लेकिन बस यह बातें हवाबाजी में ही रह जाती हैं. आज भी महिलायें कहीं सुरक्षित नहीं है, चाहे वो रोड़ हो, बस हो या ट्रेन.
अगर आज भी महिलाओं को कुछ कारणवश रात को घर आने में देर हो जाती है तो वह रात में चलना अपने आप को सुरक्षित नहीं समझ पाती. क्योंकि आज भी सबके मन में निर्भया हत्याकांड जैसी बातें कहीं न कहीं रहतीं है, हाँ, भले ही इस घटना के 10 साल से भी ज्यादा दिन हो गये हो लेकिन यह डर अभी भी हमारे अंदर जीवित है.चाहे वो चेतन मन में हो या अवचेतन लेकिन यह डर हमारे अंदर हैं.
हालांकि केवल समाज की मानसिकता को दोष देकर प्रशासन अपनी जिम्मेदारियों से बच नही सकता. महिलाओं के प्रति अपराध के पीछे सबसे बड़ा कारण उसकी तरफ से बरती जाने वाली लापरवाहीयां और जांच आदि में पक्षपातपूर्ण रवैया हैं.
विडम्बना है, सरकार की तरफ ऐसी सजा ही सख्त नहीं है, जिससे पुरुष ऐसे अपराध करने से पहले हाजार बार सोचें. लेकिन गौरतलब है कि ऐसी घटनाएं दिन - प्रतिदिन बढते हुए ही नजर आती हैं.
बस, महिला दिवस और महिलाओं के बारे में नारे लगाने से नहीं होगा, महज वादे और नारों को हकीकत में उतरनी चाहिए..
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