देश के कुल कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी की बात हर साल आती हैं. कितनी महिलायें किस क्षेत्र में अपना बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं, सबकुछ सामने आती है लेकिन इनके स्वास्थ्य के बारे में कोई रिपोर्टर नहीं आती, और न उसपर कोई ज्यादा चर्चा होती है.एक सवे्क्षण के मुताबिक हमारे देश में महिलाओं की संख्या पुरूषों से ज्यादा होने की संकेत बताई जा रही हैं . ऐसे में देश की आबादी के सबसे बडे़ तबके के रूप में महिलाओं के स्वास्थ्य पर नजर जरूर जानी चाहिए. यह तथ्य थोड़ा चौकानें वाला जरूर है कि हर दूसरी महिला खून की कमी से पीड़ित है और हर तीसरी महिला का ' बाडी मास इंडेक्स' से कम है. कुल आबादी की एक चौथाई महिलाएँ कुपोषण का शिकार हैं. तमाम वादों और उसके दावों के बावजूद आगर ये हाल है, तो हमें सर्तक हो जाना चाहिए. कई सर्वेक्षण में यह उजागर है कि महिलाओं को पुरूषों की तुलना में कम पोषण मिलता है. यूँ बोले, तो हमारा समाज आज भी पुरूष प्रधान है. आज भी पुरूष को ज्यादा पोषण दिया जाता है. हमारे गाँव में यह प्रचलन है, कि पुरूष को काम करना होता है, तो उन्हें ज्यादा पोषण की जरूरत है, महिला तो चारदीवारी के अंदर रह...
Cancer, it's a very dangerous disease. More of the people face of this problem. It's permanent treatment is not available in India yet. But now a days scientists try to finish this disease. More of the people died because it's treatment are very costly . A 100 types of cancer affect the people. When we are we escape this disease. Taboo is 22% responsible of this disease. And 10 % of alcohol is also responsible of this disease. Now in our society, drinking and tabcoo are normal. Most of the people addicted this things. Now a young student are also addicted and i see. Now in market, bar and public people you easily see this a boy are forced her girlfriend to drink and smoking and she drink. In the developing world 15% of cancers are due to infections such as Helicobacter pylori, hepatitis B, hepatitis C, human papillomavirus infection, Epstein–Barr virus and human immunodeficiency virus (HIV).These factors act, at least partly, by changing t...
दुनिया का हर एक इंसान अपने सम्मान और सुरक्षा की उम्मीद रखता है. पर अफसोस की बात, तो यह है कि आज भी हमारे देश में महिलाओं को उनके ही घर में सम्मान का माहौल नहीं मिल रहा है. देश की आबादी का आधा हिस्सा होने के बावजूद औरतें अपने घर में अपना मानवीय हक तक भी हासिल नहीं कर पाई है. घर में उनके साथ हिंसक घटनाएं होती रहती है ं, फिर भी वह चुप्पी लगाये रहती है. अगर हम संविधान की दृष्टि से देखें तो यह बिल्कुल गलत है. " क्योंकि आज सबको बोलने का अधिकार है अपने प्रति. शिक्षित और आत्मनिर्भर होती स्त्रियों के आकड़े भी उन्हें मानवीय हक नहीं दिला पा रहे हैं. यह प्रताड़ना मानसिक और शारीरिक दोनों तौर से उन्हें कमजोर करते रहती है. हाल में ही जारी भारत के अट्ठाईस राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों के 707 जिलो के करीब साढ़े छह लाख घरों के सर्वेक्षण के आधार पर तैयार इस बात की पुष्टि करती है. गौरतलब है कि स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की पांचवी रिपोर्ट में सामने आया है कि देश में आज भी लगभग एक तिहाई शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार हैं. ...
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